रिटेल निवेशकों ने Q3 2025 में अमेरिका के स्टॉक ट्रेडिंग वॉल्यूम का लगभग 20% हिस्सा हासिल किया है, जो अब तक का दूसरा सबसे बड़ा स्तर है। इसी समय, क्रिप्टो मार्केट में बिल्कुल उल्टा ट्रेंड दिख रहा है जहां संस्थागत (institutional) कैपिटल डॉमिनेट कर रहा है और रिटेल पार्टिसिपेशन घट रहा है।
एक्विटीज और डिजिटल एसेट्स के बीच यह अंतर मार्केट मैच्योरिटी, वोलटिलिटी और 2026 के आते-आते दोनों एसेट क्लासेज के भविष्य की दिशा को लेकर अहम सवाल खड़े करता है।
Stocks अब रिटेल, Crypto हो रहा Institutional
रिटेल इन्वेस्टर एक्टिविटी में बढ़ोतरी से इक्विटी मार्केट स्ट्रक्चर में बड़ा बदलाव आया है। Kobeissi Letter द्वारा शेयर किए गए डेटा के मुताबिक, इंडिविजुअल इन्वेस्टर्स ने Q3 2025 में ट्रेडिंग में अब तक का दूसरा सबसे ज्यादा हिस्सा पकड़ा है, जो कि Q1 2021 के मीम स्टॉक सर्ज के पीक के बेहद करीब है।
2020 से पहले, कई सालों तक एवरेज रिटेल पार्टिसिपेशन करीब 15% रहता था। ऐसे में अभी का 20% आंकड़ा काफी मायने रखता है।
रिटेल पार्टिसिपेशन ने अलग-अलग इंस्टिट्यूशनल कैटेगरीज़ से भी ज्यादा ग्रोथ दिखाई है। पिछले क्वार्टर में लॉन्ग-ओनली म्यूचुअल फंड्स और ट्रेडिशनल हेज फंड्स, दोनों ने करीब 15% वॉल्यूम का ही योगदान दिया, जो कि 2015 की तुलना में आधा है। इसके अलावा, क्वांट्स समेत सभी फंड कैटेगरीज़ ने Q3 में मिलकर केवल 31% हिस्सा रखा।
“रिटेल इन्वेस्टर्स मार्केट को रिकॉर्ड रफ्तार से टेकओवर कर रहे हैं,” Kobeissi Letter ने कहा।
उधर, क्रिप्टो मार्केट में अब स्टॉक मार्केट के बिल्कुल विपरीत स्थिति दिख रही है। जहां पहले रिटेल इन्वेस्टर्स ने बुल रन में तेजी दिखाई थी, वहीं 2025 में संस्थागत डॉमिनेंस का शिफ्ट साफ दिख रहा है। JPMorgan ने अपनी हालिया रिपोर्ट में हाइलाइट किया कि मार्केट में रिटेल पार्टिसिपेशन कम हो गया है। बैंक के अनुसार,
“क्रिप्टो अब वेंचर कैपिटल स्टाइल इकोसिस्टम से हटकर एक रेग्युलर ट्रेडेबल मैक्रो एसेट क्लास की तरह दिखता है, जिसमें रिटेल स्पेक्युलेशन की बजाय इंस्टिट्यूशनल लिक्विडिटी लीड कर रही है।”
यह भी अहम है कि क्रिप्टो मार्केट में ड्रॉडाउन के चलते एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड्स (ETFs) की डिमांड घटी है और डिजिटल एसेट ट्रेजरी (DAT) फर्म्स पर काफी दबाव पड़ा है। हालांकि, एनालिस्ट्स का मानना है कि बाइंग इंटरेस्ट स्लो हुआ है, पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है।
यह डाइनैमिक रिटेल और इंस्टिट्यूशनल बिहेवियर के बीच बढ़ती दूरी में साफ देखने को मिलता है। CryptoQuant के डेटा के अनुसार, 2025 के दौरान इंस्टिट्यूशनल Bitcoin होल्डिंग्स लगातार बढ़ीं, जबकि रिटेल इन्वेस्टर्स का रुझान एकदम विपरीत रहा।
ये अंतर क्यों मायने रखता है
मार्केट में बदलाव केवल पार्टिसिपेशन रेट तक सीमित नहीं है। स्टॉक मार्केट्स में रिटेल एक्टिविटी का बढ़ना अक्सर उस माहौल को दर्शाता है जहां प्राइस मूवमेंट शॉर्ट-टर्म narratives, मोमेंटम chasing और भीड़ के बिहेवियर से ज़्यादा प्रभावित होती है। जब इंडिविजुअल इन्वेस्टर्स ट्रेडिंग में डोमिनेट करते हैं, तो मार्केट अक्सर जल्दी रिएक्ट करती है।
वहीं दूसरी ओर, क्रिप्टो एनालिस्ट्स इंस्टिट्यूशनल डॉमिनेंस को maturity और भविष्य की stability के तौर पर देखते हैं। ज्यादा इंस्टिट्यूशनल कैपिटल से liquidity गहरी होती है, प्राइस ज्यादा stable रहती है, और (थ्योरी के हिसाब से) volatility कम हो जाती है। बड़े इंस्टिट्यूशन आम तौर पर लॉन्ग-टर्म के नजरिये से इन्वेस्ट करते हैं और उनके पास risk management भी बेहतर होता है, जिससे wild swings की बजाय steady प्राइस ग्रोथ देखने को मिलती है।
फिर भी, क्रिप्टो को लेकर expectations अभी भी सतर्क हैं। Barclays ने प्रोजेक्ट किया है कि 2026 क्रिप्टो के लिए डाउन ईयर रह सकता है। Barclays का मानना है कि अगर बड़े कॅटालिस्ट नहीं आते, तो structural ग्रोथ लिमिटेड ही रहेगी। हालांकि, US में इस साल पॉलिटिकल क्लाइमेंट क्रिप्टो के लिए पॉजिटिव हुआ है, लेकिन Barclays का कहना है कि मार्केट पहले ही इसे प्राइस में शामिल कर चुका है।
इस तरह, इक्विटीज और क्रिप्टो के बीच का अंतर मार्केट्स में रिस्क एक्सप्रेशन के तौर-तरीकों में structural शिफ्ट को उजागर करता है। जहां रिटेल पार्टिसिपेशन बढ़ने से स्टॉक ट्रेडिंग ज्यादा sentiment-driven बन रही है, वहीं क्रिप्टो में बढ़ रहे इंस्टिट्यूशनल निवेश maturity की ओर इशारा करते हैं, मगर साथ ही मोमेंटम थोड़ा ठंडा जरूर है। ये फर्क सिर्फ शॉर्ट-टर्म के लिए है या ये लॉन्ग-टर्म बदलाव बन जाएंगे, ये तो 2026 के करीब आने पर ही साफ होगा।