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Polygon Executive ने बताया 2025 में Big Finance को क्रिप्टो क्यों चाहिए और रिटेल क्यों नहीं

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Kamina Bashir

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Harsh Notariya

09 दिसंबर 2025 16:00 UTC
विश्वसनीय
  • अब क्रिप्टो इनफ्लो का 95% इंस्टीट्यूशंस के पास, रिटेल की दिलचस्पी घटी
  • Polygon के Aishwary Gupta ने कहा रिटेल इन्वेस्टर्स ने नुकसान के बाद मार्केट से दूरी बनाई
  • यह बदलाव ज्यादा स्थिरता लाता है, लेकिन डिसेंट्रलाइजेशन को लेकर चिंता बढ़ाता है

2025 में, क्रिप्टोकरेन्सी इंडस्ट्री ने एक नया फेज देखा, जिसमें इंस्टिट्यूशनल पार्टिसिपेशन तेजी से बढ़ा। कई सालों की सतर्कता और शक के बाद, अब बड़ी कंपनीज़ डिजिटल एसेट्स में अपना बड़ा कैपिटल निवेश कर रही हैं।

लेकिन ऐसा क्या बदल गया कि इंस्टिट्यूशंस ने आखिरकार उस इंडस्ट्री को अपनाया, जिससे वे पहले दूरी बनाकर रखते थे? BeInCrypto ने Polygon Labs के ग्लोबल हेड ऑफ Payments और Real World Assets, Aishwary Gupta से बात की, ताकि इस बदलाव के पीछे के कारणों को समझा जा सके। Gupta ने बताया कि अब इंस्टिट्यूशनल इनफ्लो मार्केट में क्यों डोमिनेट कर रहे हैं और इसका क्या असर है।

Institutions अब क्रिप्टो इनफ्लो पर हावी, जानें वजह

Gupta के मुताबिक, अब इंस्टिट्यूशंस करीब 95% क्रिप्टो इनफ्लो के लिए जिम्मेदार हैं। वहीं रिटेल पार्टिसिपेशन घटकर लगभाग 5-6% रह गया है। ये बदलाव पुराने दिनों के हाइप-ड्रिवेन, रिटेल-लीड साइकल से हटकर अब एक ऐसी मार्केट के रूप में सामने आया है, जिसे स्ट्रक्चर्ड फाइनेंस आकार दे रहा है।

BlackRock, Apollo, और Hamilton Lane जैसे बड़े एसेट मैनेजर्स अब अपने पोर्टफोलियो का करीब 1-2% हिस्सा क्रिप्टो में लगा रहे हैं। साथ ही, ETFs लॉन्च कर रहे हैं और ऑन-चेन टोकनाइज्ड इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट्स का ट्रायल कर रहे हैं।

Gupta की मानें, असल बदलाव Wall Street के माइंडसेट में नहीं बल्कि उस नई इन्फ्रास्ट्रक्चर में है, जो अब इंस्टिट्यूशनल एक्टिविटी को सपोर्ट करती है। उन्होंने Polygon का उदाहरण दिया:

“JPMorgan के साथ Monetary Authority of Singapore के अंडर पहला लाइव DeFi ट्रेड, Ondo के साथ टोकनाइज्ड ट्रेजरीज़, और AMINA Bank के साथ रेग्युलेटेड staking—इन सब पार्टनरशिप्स ने दिखाया कि DeFi की पावर ग्लोबल फाइनेंस को भी बदल सकती है। स्केलेबिलिटी और कम-कोस्ट ट्रांजेक्शन के कारण अब TradFi पब्लिक ब्लॉकचेन को यूज़ करने पर विचार कर रहा है। इंस्टिट्यूशंस को अब सैंडबॉक्स में एक्सपेरिमेंट करने की ज़रूरत नहीं—वे अब एक अच्छे से टेस्टेड, Ethereum-कंपैटिबल पब्लिक नेटवर्क पर ट्रांजेक्शन कर सकते हैं, जो ऑडिटर्स और रेग्युलेटर्स दोनों को संतुष्ट करता है।”

Gupta के मुताबिक, इंस्टिट्यूशन मुख्य रूप से दो वजहों से क्रिप्टो में आ रहे हैं—यील्ड और डायवर्सिफिकेशन की तलाश, और ऑपरेशनल एफिशिएंसी की चाह। पहली वेव में डॉलर डिनोमिनेटेड रिटर्न्स पर फोकस रहा, जिसमें टोकनाइज्ड ट्रेजरीज़ और बैंक मैनेज्ड staking जैसे प्रोडक्ट्स शामिल रहे। इससे यील्ड जनरेट करने के लिए एक जाना-पहचाना और कंप्लायंट फ्रेमवर्क मिला।

उन्होंने समझाया कि दूसरी वेव ब्लॉकचेन की एफिशिएंसी से प्रेरित है। तेजी से सेटलमेंट, शेयर की गई लिक्विडिटी, और प्रोग्रामेबल एसेट्स ने बड़े फाइनेंशियल नेटवर्क और फिनटेक कंपनियों को टोकनाइज्ड फंड स्ट्रक्चर और ऑन-चेन ट्रांसफर के साथ एक्सपेरिमेंट करने के लिए मोटिवेट किया है।

Gupta ने रिटेल के बाहर जाने की अहम वजह पर भी जोर दिया। उन्होंने बताया कि रिटेल इन्वेस्टर्स ने मार्केट छोड़ी है, क्योंकि speculative मीम कॉइन साइकल्स और अवास्तविक प्रॉफिट एक्सपेक्टेशन्स के चलते उन्हें नुकसान हुआ। इस कारण भरोसा कम हुआ, और कई छोटे इन्वेस्टर्स साइडलाइन हो गए। हालांकि, Gupta इसे स्थायी या स्ट्रक्चरल बदलाव नहीं मानते।

“अब ज्यादा स्ट्रक्चर्ड और रेग्युलेटेड प्रोडक्ट्स लोगों का भरोसा जीत सकते हैं, जिससे वे मार्केट में वापसी कर सकेंगे,” Gupta ने BeInCrypto को बताया।

फिर भी, इंस्टीट्यूशनल पार्टिसिपेशन के बढ़ने से क्रिप्टो के डिसेंट्रलाइजेशन एथोस में कमी आने की चिंता भी सामने आई है। Gupta का कहना है कि मेच्योरिटी और डिसेंट्रलाइजेशन एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं, अगर पब्लिक, ओपन नेटवर्क इनकी नींव बने रहें।

उनके मुताबिक, डिसेंट्रलाइजेशन पर खतरा सिर्फ तब आता है जब नेटवर्क्स अपनी ओपननेस खो देते हैं, ना कि जब नए पार्टिसिपेंट्स इसमें जुड़ते हैं।

“जब सब कुछ पब्लिक रेल्स पर बनाया जाए… और वॉल्ड गार्डन्स में न रहे, तो इंस्टीट्यूशनल एडॉप्शन क्रिप्टो को इतना सेंट्रलाइज नहीं करेगा, बल्कि इसे लीगल और विश्वासनीय बनाएगा। TradFi क्रिप्टो पर कब्जा नहीं कर रहा, बल्कि वह ऑन-चेन आ रहा है — ये टेकओवर या सरेंडर नहीं है, बल्कि इन्फ्रास्ट्रक्चर का मर्जर है। जैसे चेन पर DeFi और NFTs होते हैं, वैसे ही अब Treasuries, ETFs और इंस्टीट्यूशनल स्टेकिंग भी होंगे,” उन्होंने कहा।

जब उनसे पूछा गया कि कहीं इंस्टीट्यूशनल डॉमिनेंस के चलते एक्सपेरिमेंटेशन की जगह कम्प्लाएंस को प्रायोरिटी मिलना इनोवेशन को धीमा तो नहीं कर देगा? Gupta ने माना कि ऐसा तनाव जरूर है। लेकिन, उन्होंने तर्क दिया कि आखिरकार इसका फायदा पूरे सेक्टर को मिल सकता है।

‘मूव फास्ट एंड ब्रेक थिंग्स’ वाली सोच से बहुत इनोवेटिव आइडियाज आए, लेकिन इससे भारी नुकसान और रेग्युलेटरी विरोध भी देखने को मिला। हां, इंस्टीट्यूशंस धीरे चलते हैं और कंप्लाएंस पर ज्यादा फोकस करते हैं, और इससे क्रिएटिविटी दब सकती है, लेकिन अगर सही से किया जाए, तो इनोवेशन खत्म नहीं होगी। बल्कि, ये डेवलपर्स को शुरुआत से ही कंप्लाएंस के साथ इनोवेशन लाने के लिए प्रेरित कर सकती है। प्रोग्रेस थोड़ी धीमी जरूर हो सकती है, लेकिन ये अधिक मजबूत और स्केलेबल होगी,” उन्होंने बताया।

Institutions के क्रिप्टो में बढ़ते रोल के बाद आगे क्या

आगे की ओर देखें तो Gupta का मानना है कि इंस्टीट्यूशनल पार्टिसिपेशन बढ़ना इसे Wall Street के ‘टेकओवर’ की तरह नहीं, बल्कि एक मल्टीफेसटेड इकोसिस्टम में शामिल होने की तरह देखा जाना चाहिए।

“अब मार्केट इंस्टीट्यूशनल-ग्रेड लिक्विडिटी पर चल रही है, जो स्लो-मूविंग, यील्ड-बेयरिंग और ज्यादा रिस्क-मैनेज्ड है। अब मार्केट रिटेल ट्रेडर्स के इमोशनल ट्रेडिंग या FOMO से डॉमिनेट नहीं होती जैसी 2017 में होती थी। ट्रेडिंग ज्यादा स्थिर और लॉजिकल हो गई है। वोलैटिलिटी कम होगी क्योंकि कैपिटल अब सिर्फ स्पेक्युलेशन से लॉन्ग-टर्म यील्ड जनरेशन की ओर बढ़ रहा है। नैरेटिव भी बदल चुका है, अब क्रिप्टो को एक फाइनेंशियल इंफ्रास्ट्रक्चर के तौर पर देखा जा रहा है, सिर्फ एक एसेट क्लास नहीं,” उन्होंने कहा।

वो उम्मीद करते हैं कि real world asset (RWA) टोकनाइजेशन में काफी बढ़ोतरी होगी और जैसे-जैसे ट्रेडिंग ज्यादा डिसिप्लिन्ड और कम स्पेक्युलेटिव होती जाएगी, मार्केट ज्यादा स्थिर होगी। वो ये भी जोड़ते हैं कि जैसे-जैसे ट्रेडिशनल फाइनेंस के खिलाड़ी ऑन-चेन स्ट्रेटजी को डेवलप करते जाएंगे, स्ट्रॉन्ग रेग्युलेटरी इंटीग्रेशन भी बढ़ेगा।

Gupta को ये भी भरोसा है कि इंस्टीट्यूशनल स्टेकिंग और यील्ड जनरेट करने वाले नेटवर्क्स में आगे और ग्रोथ दिखेगी, क्योंकि रेग्युलेटेड एंटिटीज ऑन-चेन यील्ड में हिस्सा लेने के लिए कम्प्लाएंट तरीकों की तलाश करेंगी। साथ ही, वे मानते हैं कि interoperability अब सेंट्रल फोकस बनेगी। पब्लिक-चेन टूल्स, जो अलग-अलग रोलअप्स पर एसेट्स का सेमलेस ट्रांसफर करते हैं, वे उतने ही जरूरी हो जाएंगे जितना इंस्टीट्यूशंस की स्केलिंग एक्टिविटी बढ़ेगी।

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