India की Enforcement Directorate (ED) ने एक बड़े क्रिप्टो घोटाले की पड़ताल के तहत कर्नाटका, महाराष्ट्र और दिल्ली में 21 जगहों पर कोऑर्डिनेटेड छापेमारी की है, जो करीब एक दशक से चल रहा था।
यह सर्च 18 दिसंबर को Prevention of Money Laundering Act (PMLA) के तहत की गई। इसका टारगेट, 4th Bloc Consultants और उनके सहयोगियों के रेसिडेंशियल और ऑफिस प्रीमाइसेज थे।
India में अब तक की सबसे बड़ी क्रिप्टो bust?
अधिकारियों के मुताबिक, इस ग्रुप ने फर्जी क्रिप्टो इन्वेस्टमेंट प्लेटफॉर्म्स चलाए जिनमें भारतीय और विदेशी निवेशकों को असामान्य रूप से ज्यादा रिटर्न का झांसा देकर ठगा गया।
ED के अनुसार, यह मामला पुलिस FIR और कर्नाटका स्टेट पुलिस से मिले इंटेलिजेंस इनपुट पर शुरू हुआ।
जांचकर्ताओं का कहना है कि आरोपियों ने प्रोफेशनल दिखने वाली वेबसाइट्स बनाई थी, जो ग्लोबल लीगल क्रिप्टो ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म्स जैसी लगती थीं, जिनमें डैशबोर्ड, अकाउंट बैलेंस और ट्रांजेक्शन हिस्ट्री भी शामिल थीं।
हालांकि, ये प्लेटफॉर्म्स केवल दिखावे के लिए थे। अफसरों के मुताबिक इनमें या तो ट्रेडिंग ऐक्टिविटी थी ही नहीं या बहुत कम थी।
इसके बजाय, क्रिप्टो स्कैमर्स ने इन्वेस्टर्स का पैसा क्लासिक Ponzi या मल्टी-लेवल मार्केटिंग स्कीम जैसी स्ट्रक्चर में फिर से घुमा दिया।
अपनी क्रेडिबिलिटी बढ़ाने के लिए, ऑपरेटर्स ने कई मशहूर क्रिप्टो कमेंटेटर्स और पब्लिक फिगर्स की फोटोज़ का बिना इजाजत उपयोग किया।
शुरुआती इन्वेस्टर्स को भरोसा दिलाने के लिए थोड़े-थोड़े रिटर्न दिए गए। बाद में, उन्हें ज्यादा पैसे लगाने और रेफरल बोनस के जरिए नए लोगों को जोड़ने के लिए प्रोहत्साहित किया गया।
जैसे-जैसे यह स्कीम बढ़ी, प्रमोटर्स ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर ज्यादा ध्यान दिया, जिसमें Facebook, Instagram, WhatsApp और Telegram का इस्तेमाल हुआ ताकि ज्यादा लोगों को फंसाया जा सके।
ED का मानना है कि यह नेटवर्क भारत और विदेश दोनों में निवेशकों को टारगेट करता था।
जांचकर्ताओं का कहना है कि क्राइम से मिले पैसे को कॉम्प्लेक्स क्रिप्टो वॉलेट्स, बिना बताए विदेशों के बैंक अकाउंट्स, शेल कंपनियों और हवाला चैनल्स के जरिए लॉन्डर किया गया।
स्कैमर्स ने पैसे को peer-to-peer क्रिप्टो ट्रांसफर के जरिए भी मूव किया, फिर उसे कैश में कन्वर्ट कर या बैंक अकाउंट्स में पार्क कर दिया।
छापे के दौरान, ED ने कई ऐसे क्रिप्टो वॉलेट एड्रेस पहचाने, जिनका कंट्रोल आरोपियों के पास था, साथ ही भारत और विदेश में अवैध पैसे से खरीदी गईं चल और अचल संपत्तियां भी मिलीं।
अधिकारियों ने कई विदेशी कंपनियों को भी चिह्नित किया है, जिनका इस्तमाल पैसों का ट्रैक छुपाने के लिए हुआ।
खास बात यह है कि अधिकारियों का मानना है कि यह ऑपरेशन कम से कम 2015 से चल रहा है। जैसे-जैसे क्रिप्टो मार्केट्स पर नजर बढ़ी, वैसे-वैसे स्कैमर्स ने भी पहचान से बचने के लिए अपने तरीके बदल लिए।
जांच अभी भी जारी है।